कड़े निर्णयों से ही देश बन सकेगा समृद्धिशाली विकसित राष्ट्र
(लेख - ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी)
मोदी सरकार के नोटबंदी के निर्णय पर तरह तरह से सवाल उठा रहे लोगों के पास अब इसको लेकर आलोचना का एक मुख्य मुद्दा भी अब समाप्त हो गया, जब आई. टी. विभाग ने निर्देश जारी कर 8 नवम्बर से पहले बैंक बचत खातों में हुए लेन देन की जानकारी हेतु बैंकों के लिए आदेश जारी कर दिए। सैन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ डायरेक्ट टैक्सेज (सी.बी.डी.टी) द्वारा 6 जनवरी को जारी राजपत्रित अधिसूचना में कहा गया है कि सभी बैंक मूल भूत बचतों तथा समय आधारित जमाओं को छोड़कर सभी नकद जमाओं की पूरी जानकारी आयकर विभाग को उपलब्ध कराएं।
ज्ञातव्य है की भाजपा सरकार पर यह आरोप विगत कई दिनों से लग रहा था कि नोटबंदी की जानकारी भाजपा के कई नेताओ को पूर्व से ही थी, अत: नोटबंदी के निर्णय से पूर्व ही इनके द्वारा 500 एवं 1000 के नोट बदलने का कार्य बड़े स्तर पर हो गया। इसके मद्देनजर कई राजनैतिक पार्टियों के नेता यह मांग कर रहे थे कि सरकार 8 नवम्बर 2016 के पहले बैंकों में हुए लेन देन को सामने लाने के निर्देश जारी करे, क्योंकि नोटों को बदलने का कार्य तो 8 नवम्बर से पूर्व ही हो गया था।
आयकर विभाग द्वारा अब सभी बैंकों और डाकघरों से 1 अप्रेल 2016 से 9 नवम्बर के बीच सेविंग अकाउंट में जमा होने वाले कैश डिपॉजिट की रिपोर्ट मांगी है। आयकर विभाग ने नोट बंदी से पहले हुए लेनदेन के बारे में जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से यह रिपोर्ट मांगी है। इस निर्णय से मोदी सरकार की एक और निष्पक्षता सामने आ गई है, वहीं इस तरह की मांग के साथ नोट बंदी के प्रति आलोचना कर रहे आलोचकों के पास अब इस मुद्दे पर कहने के लिए कुछ ख़ास नहीं रहा है। यदि सरकार 9 नवंबर से पूर्व बैंक डिपाजिट संबंधी लेनदेन को सख्ती के साथ निर्धारित समय सीमा में प्राप्त कर इसकी सूचना सार्वजनिक कर देती है तो यह देश के इतिहास में ऐसा कदम कहलाएगा जिसकी तुलना किसी अन्य साहसिक निर्णय से करना कठिन हो जावेगा, वहीँ यह कदम सदभावना पूर्वक आलोचना करने वालों को भी यह कहने को मजबूर कर देगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार की कथनी और करनी एक है, उनकी नजर में सब बराबर है, यदि कोई गलत कर रहा है चाहे भाजपा का नेता हो, या दूसरी पार्टी का, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है। कानून की नज़र में सब बराबर है, जिसने जो किया है उसकी उसे सजा भुगतनी ही होगी।
उल्लेखनीय है कि सम्पति शोध कंपनी न्यू वर्ल्ड के अनुसार रूस के बाद भारत दुनिया का सबसे ज्यादा असमानता वाला देश है, जहाँ पर 54 प्रतिशत सम्पति मात्र कुछ करोड़पतियों के हाथ में है। भारत दुनिया के 10 सबसे अमीर देशों में है, जहाँ कुल संपत्ति 5600 अरब डॉलर है, लेकिन औसतन भारतीय गरीब है। वैश्विक तौर पर रूस दुनिया का सबसे ज्यादा असमानता वाला देश है,जहाँ कुल सम्पति के 62 प्रतिशत पर मात्र कुछ धन कुबेरों का नियंत्रण है। वहीँ दूसरी तरफ जापान दुनिया में सबसे ज्यादा समानता वाला देश है, जहाँ धनवान लोगों के हाथ में कुल सम्पति का 22 प्रतिशत हिस्सा है। आस्ट्रेलिया में कुल सम्पति के 28 प्रतिशत पर धन कुबेरों का आधिपत्य है, इसके बाद अमेरिका एवं ब्रिटेन भी समानता वाले देशों में है, इनमें कुल सम्पति के क्रमशः 32 प्रतिशत एवं 35 प्रतिशत पर धनाढ्य लोगों का कब्ज़ा है। संपत्ति के आधार पर देशों में असमानता वाली यह जानकारी hindi.cobrapost.com में दर्शाई गई है।
संपत्ति में असमानता की दृष्टि से भारत दूसरा बड़ा राष्ट्र है जहाँ सम्पति की दृष्टि वाली इस असमानता को एक दिन में नहीं सुधारा जा सकता। जापान एवं आस्ट्रेलिया जैसी धन की समानता वाली स्थिति में लाने के लिए भी सरकार को बिना भेद भाव के ऐसे कई कड़े निर्णय लागू करने पड़ेंगे। कड़े निर्णय लेना और उनको दृढता से लागू करना, दो अलग अलग पहलू हैं। पहले यह सोचना कि निर्णय कैसा है, इसके दूरगामी परिणाम क्या क्या हो सकते हैं, दूसरा इसको कैसे लागू किया गया है, इसमें क्या चूक थी जिसकी वजह से जो संभावित लाभ थे वे एकदम से नहीं मिल पाए हैं या भविष्य में संभावित तिथि से कितने दिन बाद तक प्राप्त हो पाएंगे। ये दोनों बातें अलग अलग है।
नोटबंदी का यह निर्णय नि:संदेह ऐसा निर्णय है जो अत्यंत कड़ा अवश्य है किंतु इसका फल ठीक वैसे ही है, जैसे कोई खाने की कड़वी ऐसी चीज जो खाने में बेहद कड़वी अवश्य होती है किन्तु पेट एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत गुणकारी एवं स्वस्थकारक सिद्ध होती है। इस साहसिक निर्णय की जितनी सराहना की जावे, वह कम ही कहलाएगी, क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम इतने सुंदर होंगे, जिसकी हम अंशतः ही कल्पना कर पा रहे हैं।
नोटबंदी के पक्ष में मेरे ही ऐसे विचार हों, ऐसा मैं नहीं सोचता हूँ, यदि इस सम्बन्ध में अब तक हुए सबसे बड़े सर्वे के आंकड़ों को भी देखा जावे तो उससे भी प्रतीत होता है कि लाख तकलीफों के बावजूद भी ज्यादातर लोग मोदी जी के साथ खड़े है। यह सर्वे भी उस दौरान का है जब नोटबंदी लागू हुए कुछ ही दिन बीते थे और लोगों की परेशानियां बढ़ रही थी। इनसॉर्ट द्वारा ग्लोबल मार्केट रिसर्च कंपनी IPSOS की मदद से किए गए इस सर्वें में 82 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के फैसले को सही ठहराया था। यानी 2014 के लोकसभा चुनाव से भी बड़ा जनसमर्थन उन्हें इस मसले पर मिलता हुआ नजर आ रहा था। सर्वे में जबकि 84 फीसदी जनता का मानना है कि काले धन को लेकर केंद्र सरकार वाकई गंभीर है। ग्लोबल मार्केट रिसर्च कंपनी IPSOS के सर्वे से पता चला है कि युवा भारत मोदी के समर्थन में खड़ा है। सिर्फ यंग इंडिया ही नहीं बल्कि अर्बन इंडिया ने भी ब्लैक मनी को लेकर सरकार की स्ट्रैटजी की सराहना की है। ये सर्वे करीब पांच लाख लोगों की राय पर आधारित था और उसमें भी करीब 80 फीसदी लोगो की उम्र 35 साल से कम थी। ऐसे में सर्वे के निष्कर्ष बतातें है कि देश का युवा और मेट्रो सिटी में रहने वाले लोग इस बात को मानते है कि काले धन और भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की जो रणनीति है वो काफी बेहतर हैं। उसकी सराहना की जा रही हैं। देश की जनता इस बात को भी मान रही है कि उन्हें तकलीफ हो रही है, लेकिन ब्लैक मनी और भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ खडी नजर आ रही है। यद्यपि यहाँ यह कहना उचित होगा कि किसी भी सर्वें को समस्त जनता की राय नहीं माना जा सकता है, यह एक संकेत भर होता है, एक अनुमान होता है, यह पूर्ण सत्य को भी दृष्टिगोचर कर सकता है और नहीं भी, क्योंकि इसमें कुछ लोगों से ही रायशुमारी की जाती है। सर्वे की यह रिपोर्ट indiatrendingnow.com से ली गई है, सर्वे के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी इस साईट पर विजिट करके भी देखी जा सकती है। कुछ लोगों पर किए गए इस सर्वे के आंकड़ों से या मीडिया में दिखाई दे रहे लेखों से या विभिन्न इंटरव्यूज में, मोदी जी के इस निर्णय की सराहना ज्यादा आलोचना कम दिखाई दे रही है और अब जब 9 नवम्बर से पहले के लेनदेन को भी सामने लाने की पहल सम्बंधित विभाग द्वारा कर दी गई है, तो इस विषय पर आलोचना के लिए आलोचकों के पास कुछ विशेष नहीं रहा है।
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