Thursday 31 December 2015

पर्यावरण को कैसे मिले बड़ी गति, अध्यात्म एवं ध्यान की सिद्धि के लिए भी भारत की प्राचीन पर्यावरणीय व्यवस्था को पुनः स्थापित करने को मूलभूत आवश्यकता मानते हुए पूरा करने पर शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता - ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी


तमाम भौतिक सुख सुविधाओं के बावजूद आज मनुष्य अपने आपको अत्यंत अशांत महसूस कर रहा है, यूं कहना चाहिए कि  जैसे जैसे हमने भौतिक सुख साधन जुटाएं हैं, हमने हमारी मन की शान्ति खो दी है। कोई कहे कि मैं यह कैसे कह रहा हूँ कि मनुष्य अपने आपको अशांत महसूस कर रहा है, इसके जवाब में मेरा तर्क होगा कि आज जगह जगह ध्यान केंद्र चल रहे हैं, मेडिटेशन सेंटर चल रहे हैं, लोगों की बेतहाशा भीड़ उनमें अपनी शान्ति खोज कर रही है, यह इसी  बात का प्रमाण है।   विदेशी लोग जिस शांति को भारत की मंत्र, योग, प्रार्थना एवं विभिन्न आध्यात्मिक आहार विहार की साधनाओं एवं क्रियाओं द्वारा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं हम विगत दशकों में इनसे दूर पर दूर हुए हैं ।  कई सालों से मेरा इस बारे में चिंतन मनन चलता रहा है,  मेरे मस्तिष्क में बहुत सारी बाते आती जाती रही है, नए नए विचार आए हैं, जिनके परिप्रेक्ष्य में  कुछ को मैं यहाँ शेयर करने जा रहा हूँ. हमारा भारत ध्यान एवं विशिष्ट विद्याओं का मुख्य केंद्र हुआ करता था, इसका एक मुख्य कारण हमारे ऋषि मुनि का ध्यान में तल्लीन हो जाना, ध्यान की सिद्धि प्राप्त हो जाना, जो अब दूर हो गई है। ध्यान की सिद्धि से त्रि -नेत्र खुलना सम्भव होना, टेलीपैथी जैसी योग्यताएं प्राप्त होना सम्भव था। ध्यान की सिद्धि के लिए जो वातावरण एवं परिस्थितियाँ  हमारे देश में ज्यादा रूप में सुलभ तरीके से उपलब्ध होती  थी वो अन्यत्र कम थी। हमारे देश की आध्यात्मिक व्यवस्था के अनुसार आयु के अंतिम वर्षों में संन्यास ले लेना या संन्यास के तुल्य जैसा जीवन बिताना शामिल था, अर्थात राग, द्वेष, मोह को बिलकुल छोड़ना या कम करना, आत्मा के कल्याण की तरफ ध्यान देना शामिल था, जो कि जंगलों एवं निर्जन पर्वतों पर ही सम्भव थी। भौतिक विकास करने की तरफ ध्यान देने में हम हमारी इस मूलभूत आवश्यकता को भूल से गए हैं। आज का मेरा यह लेख इसी मूल आवश्यकता को पूरा करने या कराने के तरफ ध्यान दिए जाने पर केंद्रित है, जिसको यदि पूरा किया जावे तो पर्यावरण सरंक्षण को तो बढ़ावा मिलेगा ही, साथ ही साथ पर्यावरणीय विषमताओं के कारण हो रही बीमारियों एवं विभिन्न कष्टों को रोकने की दिशा में भी गति सम्भव होगी। मेरे विचार से हम जिस नगर उप नगर में रहते हैं, उसके बाहर भी बड़े क्षेत्र को घेरे हुए इस तरह के जंगल होने चाहिए, जिनको यहाँ  जंगल तो विषय की स्पष्टता दर्शाने की दृष्टि से कहा जा रहा है, मेरा अभिप्राय: घने विशाल पेड़ पौधों, नदी नालों कंकर पत्थर युक्त  शिला आदि लिए हुए बड़े स्थान उपलब्ध होने से है, अर्थात जंगल जैसा दिखने वाला ऐसा वातावरण हो, जिसमें खतरनाक किस्म के जानवरों को छोड़कर सब तरह के जानवर (पशु - पक्षी)  भी जीवन यापन कर सकें। विभिन्न जाती - प्रजाति के पशु पक्षियों का पर्यावरणीय संतुलन बनाने में बड़ा योगदान होता है, इनका धीरे धीरे लुप्त हो जाना पर्यावरणीय विषमता को बढ़ाने का एक बहुत बड़ा कारण है। स्वन्त्रता सभी को प्रिय होती है, पशु पक्षी को भी स्वन्त्रता उतनी ही अच्छी लगती है जितनी हमें । हम इनको बन्धन में रखकर बचाना चाहते हैं, जो सम्भव नहीं है, किसी जाती -  प्रजाति को बंधन में रखते हुए हम बढ़ाना चाहें,  सम्भव नहीं है । आज सभी लुप्त होती जा रही पशुओं की विभिन्न प्रजातियों को बचाना चाहते हैं और बढ़ाना चाहते हैं  यह तभी सम्भव है जब हम इन्हें स्वन्त्रता पूर्वक विचरण करने वाला वातावरण दे सकें, तभी लुप्त होती जा रही प्रजातियों को बचाना सम्भव है, उक्त दृष्टि से भी उक्त पर्यावरणीय वातावरण बनाना आवश्यक है, यदि सम्भव बन सके तो ऐसे पर्यावरणीय वातावरण युक्त बड़े स्थान को सभी तरह की तरंगो, बिजली आदि के विभिन्न प्रभावों से मुक्त भी रखा जावे। 
आज के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मैं उक्त स्थान पर कोई जंगल स्थापित  होने की बात करूँ तो आपको बड़ी अटपटी या बेहूदी लगेगी, केवल विषय की स्पष्टता की दृष्टि से मैं यहाँ जंगल शब्द प्रयोंग कर रहा हूँ। यद्यपि हमारी सरकार का ध्यान पर्यावरण संतुलन को लेकर विगत वर्षों में काफी गया है जिसके तहत हर कॉलोनी में आज बगीचे अनिवार्य रूप से बनाए जा रहे हैं, मेरा मानना है यह पर्याप्त नहीं है, हमारे विभिन्न कष्टों एवं बीमारियों का निवारण करने के लिए हमें हमारी कुछ पुरानी व्यवस्थाओं में आधुनिक परिस्थितियों से तालमेल बैठाते हुए लौटना होगा। मेरे चिंतन में स्पष्टत:  यह बात आई है कि विभिन्न तरह के जाति प्रजाति के पशु पक्षी पर्यावरणीय संतुलन को बनाने का काम करते हैं, नदी का जो पानी पेड़ पौधों पर गुजरते हुए विभिन्न तरह के कंकर पत्थरों से टकराते हुए पीने के काम आता था, वो विशेष शक्ति युक्त हुआ करता था, इन सब का हमने अभाव ही कर ही दिया है।  हम ध्यान की सिद्धि चाहते हैं वो ऐसे शांत वातावरण में ही सम्भव है, जहाँ टेलीफोन, मोबाइल, टी वी आदि की तरंगो का अभाव हो,  जहाँ पूर्णतः प्राकृतिक वातावरण हो, जहाँ शान्ति हो, उसी वातावरण में ध्यान आदि की  सिद्धि सम्भव है, हमने बिना सोचे समझे बेतहाशा रूप में जंगल के जंगल काट दिए, वो जंगल, खेत अब वापिस नहीं ला जा सकते और न ही आज के चकाचौंध भरे वातावरण मेरी मांग का कोई समर्थन करने आगे आएगा। जब एक तरफ दूर दूर तक आवासीय  कालोनियां  बसाई जा रही है, शहर के बाहर की जगह की कीमतें करोड़ों को छू रही है, मेरी बात बहुतों को हास्यापद ही लगेगी, किन्तु मैं फिर भी अपना चिंतन सामने रख रहा हूँ, मैं मेरे उक्त विचार को आज की सबसे मूल भूत आवश्यकता के रूप में  सामने रख रहा हूँ। एक समय था जब आदमी अशांति महसूस करता था या उसे वैराग्य हो जाता था, उसको संन्यास की आवश्यकता महसूस होती तो  वो वन को गमन कर जाता था। आज वन नहीं है, बाग़ बगीचें भी आसपास बना दो तो भी ध्यान एवं समाधि का वन जैसा वातावरण वे नहीं दे सकते, जिसके कि अभाव में हमारे ऋषि मुनि वो सिद्धियां या आश्चर्यजनक बातें सामने लाने में सामर्थ्यशील भी नहीं हो सकते, हमारे आसपास विचारों के साथ विभिन्न तरह तरंगो का व्यापक जाल है, प्रदूषित वातावरण है, जिसमें ध्यान की पूर्ण सिद्धि सम्भव नहीं है। हमारे आध्यात्मिक गुरु जन पहले जैसी ऋद्धियाँ प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, उनमें यह भी एक बड़ा कारण है, जिसमें वन जैसी  उपयुक्त जगह का अभाव होना है। हम जो पर्यावरण को गति दे रहे हैं वह पर्याप्त नहीं है, सृष्टि की रक्षा, पर्यावरणीय संतुलन के लिए उक्त बातों पर विचार आज पहली बड़ी जरुरत होनी चाहिए। विषम होते जा रहे वातावरण में पर्यावरण सरंक्षण को सबसे बड़ा कर्त्तव्य घोषित किया जाना चाहिए, उक्त के अलावा भी जहाँ भी सम्भव हो पर्यावरण बढ़ाने से सम्बंधित कार्य करने वाले को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हमने देखा है कि विदेशी राष्ट्रों में हमारी विद्याओं/आध्यात्मिक शक्तियों की तरफ समय समय पर ध्यान गया है, उनमे इन सबको लेकर शोध एवं अनुसंधान की तरफ विशेष जिज्ञासा है और तुरंत पहल करने की रूचि भी है, वे उक्त  दिशा में पहले पहल करें, इससे पूर्व हमें इस दिशा में पहल करनी चाहिए,क्योंकि एक इस तरफ बड़ी पहल करने पर पर्यावरण को ज्यादा शीघ्रता से बढ़ा पाएंगे, पशु पक्षी की विभिन्न जाति - प्रजाति को सरंक्षित करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए इनके द्वारा होने वाले पर्यावरणीय संतुलन को स्थापित करने में गति कर पाएंगे, हमारे भारतीय जीवन का  जो एक मूलभूत तत्व या उद्देश्य है जिसके तहत हम या हमारे ऋषि मुनि ध्यान साधना के लिए कोई उपयुक्त स्थान/वातावरण पा सकें, उसको पूरा करने में सफल हो पाएंगे। इसके अलावा अनगिनत प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष  ऐसे विभिन्न लाभ जिनसे हम सब में से प्राय :कर सब वाकिफ हैं, को पाने के दिशा में गति  दे पाएंगे।
   
नोट: यह लेख महावीर  कुमार सोनी के चिंतन मनन पर आधारित उनका मूल लेख है, आप इसे कहीं भी पुनः प्रकाशित कर सकते है, बेबसाइट, बेब पोर्टल आदि में दे सकते हैं, किन्तु देते समय लेखक का नाम आवश्यक रूप से दें. पसंद आया हो तो पर्यावरणीय हित में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

Sunday 13 December 2015

मुख्यमंत्री ने किया विकास प्रदर्शनी का उदघाटन, सोशल मीडिया प्लेटफार्म का शुभारम्भ


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Saturday 12 December 2015

कंपनी कार्य मंत्रालय के ‘कारोबार में सुगमता’ लाने वाले प्रयासों से कंपनी के पंजीकरण में लगने वाला समय घटकर आधा हुआ


भारत सरकार के कंपनी कार्य मंत्रालय ने पिछले एक साल के दौरान अनेक कदम उठाए हैं और मंत्रालय अब विभिन्न प्रक्रियाओं एवं नियामकीय रूपरेखा को और ज्यादा सुव्यवस्थित करने की तैयारी में है, ताकि किसी कंपनी के निगमन में लगने वाला कुल समय घट सके। मंत्रालय द्वारा ‘कारोबार में सुगमता’ लाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत ही यह कदम उठाया जा रहा है। एकीकृत निगमन फॉर्म ‘आईएनसी29’ पेश किए जाने और कंपनी रजिस्ट्रार (आरओसी) के प्रदर्शन की कड़ी निगरानी से त्वरित मंजूरी संभव हुई है और इसके साथ ही अब हितधारकों से अपेक्षाकृत कम स्पष्टीकरण मांगे जाते हैं। मंत्रालय जल्द ही आईएनसी29 फॉर्म का एक नया वर्जन जल्द पेश करेगा जिसमें हितधारकों के सुझाव शामिल होंगे। पांच निदेशकों तक की नियुक्ति की इज़ाजत देना एवं किसी कंपनी के नामकरण में और ज्यादा लचीलापन लाना इनमें शामिल हैं। 

मंत्रालय द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के फलस्वरूप किसी कंपनी के निगमन में लगने वाला औसत समय दिसंबर 2014 के 9.57 दिनों से घटकर नवंबर 2015 में 4.51 दिन रह गया। यह लक्ष्य रखा जा रहा है कि कंपनी निगमन में लगने वाले समय को और ज्यादा घटाकर समान स्थितियों में महज 1-2 दिन कर दिया जाए। 

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PIB
आरआरएस/डीए – 6076

डॉ. सोनल मानसिंह स्वच्छ भारत अभियान के लिए नृत्य प्रदर्शन करेंगी


प्रख्यात नर्तकी और पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सोनल मानसिंह स्वच्छता से रहने की आदत अपनाने सहित स्वच्छ भारत अभियान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कल यानी 12 दिसंबर, 2015 को नई दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर नृत्‍य प्रस्‍तुत करेंगी। शाम 6 बजे से शुरू होने वाले एक घंटे के इस कार्यक्रम का विषय साफ-सफाई होगा। 

स्वच्छ भारत अभियान की दूत डॉ. सोनल मानसिंह ने स्वेच्छा से नृत्‍य प्रदर्शन की पेशकश की है और इसमें शहरी विकास मंत्रालय उनको सहयोग दे रहा है। 

यह कार्यक्रम विरासत स्थलों, स्मारकों और धार्मिक स्थानों पर चल रहे साफ-सफाई को बढ़ावा देने के अभियान के हिस्से के रूप में आयोजित किया जा रहा है। 

इस अवसर पर शहरी विकास राज्यमंत्री श्री बाबुल सुप्रियो स्वच्छ भारत अभियान के बारे में जागरुकता फैलाने में अग्रणी कुछ संगठनों को सम्मानित भी करेंगे। इनमें मां अमृतानन्‍दमयी न्‍यास, आगा खान फाउंडेशन, वेल्‍लाकीनी चर्च एसोसिएशन (तमिलनाडु), आई- क्‍लीन (भोपाल), संत निरंकारी संघ (दिल्ली) और इंडिया राइजिंग शामिल हैं। 

- P I B
एमके- 6071