Thursday 9 June 2016

जल संकट निवारण एवं पर्यावरण कार्यक्रमों को कैसे मिले बड़ी गति, पर सुझावों को लेकर संगोष्ठी का आयोजन

धर्मशाला, शमशान घाट, होटल, गेस्ट हाउस, जैन मंदिर एवं विभिन्न सार्वजनिक भवन प्रबंधकों के नाम अपील - जल संरक्षण के क्षेत्र में समुचित प्रयासों हेतु आगे आएं, किये गए प्रयासों से अवगत कराएं

"जल एवं पर्यावरण सरंक्षण कार्यक्रमों को कैसे विशेष गति मिले"  विषय को लेकर आज यहाँ आइजेविसिका कार्यालय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। समग्र जैन महासभा एवं आईजेविसिका की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए इंटरनेशनल सेंटर फॉर ज्योतिष, वास्तु, स्पिरिचुअल एन्ड कल्चरल एक्टिविटीज ट्रस्ट के अध्यक्ष महावीर कुमार सोनी ने बताया कि उनके द्वारा समस्त मंदिर, धर्मशाला एवं इस प्रकार के विभिन्न सार्वजनिक भवनों के प्रबन्धकों से  अपील की गई थी कि ऐसे भवनों में उनके द्वारा थोड़े से प्रयास द्वारा ही भू गर्भ में वापस जल पहुंचे, को बड़ी गति दी जा सकती है, कारण कि इन सार्वजनिक भवनों में बड़ी संख्या में लोग नहाते हैं, नहाने के बाद वह पानी वापस भू गर्भ में जावे, इसकी प्राय:कर समुचित व्यवस्था नहीं है, इस हेतु पहल धर्मशाला, शमशान घाट, होटल, गेस्ट हाउस, जैन मंदिर (इन मंदिरों में अभिषेक करने वाले व्यक्ति प्राय:कर यहीं नहाकर अभिषेक, पूजा आदि करते है।) एवं विभिन्न सार्वजनिक भवनों से की जानी चाहिए, बार बार की अपील के बावजूद इस  संबध में समुचित प्रयास नहीं हुए हैं, लोगों में जितनी जागरूकता आनी चाहिए थी वह नहीं आई है, लोग आने वाले पेय जल संकट के प्रति गंभीर नहीं है, ऐसे सार्वजनिक भवनों में ही इस महती कार्य को ऐसे कितने भवन प्रबन्धकों द्वारा अमल में लाया जा चुका है, की जानकारी सोशल साइट्स आदि द्वारा भी उन्होंने कई बार चाही थी, ताकि ऐसे बड़े प्रयास करने वालों के नाम उजागर कर और उन्हें सम्मानित कर अन्य लोगों को इस हेतु प्रेरित किया जावे। इस पर गोष्ठी में उपस्थित सर्व श्री शान्ति लाल जी बागडिया एवं हरक चंद जी छाबड़ा ने बताया कि मधुवन जैन मंदिर में यह व्यवस्था कॉफी अरसे पूर्व लागू की जा चुकी है, त्रिवेणी स्थित जैन मंदिर में भी यह व्यवस्था काफी पूर्व स्थापित की जा चुकी है किन्तु व्यापक स्तर पर ऐसा नहीं हो रहा है इसका कारण इस कार्य में बड़ा खर्चा लगना है, भू गर्भ में पानी साफ होता हुआ पहुंचे ऐसी व्यवस्था स्थापित होने में लगभग 40 हजार रुपए लग सकते हैं। मंदिर के बाहर एवं कालोनियों में सघन वृक्षरोपण कार्यक्रमों हेतु भी धन एक बड़ी बाधा है। इस पर श्री सोनी ने सरकार के नाम अपील जारी कर कहा कि ऐसे बड़े कार्यक्रमों के लिए वो प्राथमिकता पूर्वक पहल करे, मंदिर एवं सार्वजनिक भवन प्रबंधको को इस महती कार्य के लिए उत्साहित करने हेतु या तो स्वयं धन उपलब्ध करावे या  जन प्रतिनिधि निधि से धन उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे, उन्हें हर प्रकार से प्रोत्साहित करे तथा एक अन्य  विकल्प के रूप में इस हेतु कार्यक्रम आयोजित कर कार्यक्रम की अध्यक्षता करने वाले समाज के नेतागणों से भी सहयोग के लिए आव्हान करना चाहिए।
इस अवसर श्री सोनी ने यह भी कहा कि हम लोग जब चेतते हैं जब समस्या अपने अंतिम चरण में आ जाती है या भीषण रूप ले लेती है, पर्यावरण की तरफ बढ़ता हुआ संकट ऐसा ही संकट है जिस पर भी हर स्तर पर बड़ा प्रयास जरुरी हो गया है, पर्यावरण सरंक्षण को सबसे बड़ा कर्तव्य घोषित किया जाना चाहिए। सोनी ने प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए प्रथम प्रयास के रूप में उनका सुझाव है कि सार्वजनिक वाहन प्रणाली को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, इसमें जो खामियां है उन्हें दूर करे, सरकारी अधिकारी कर्मचारी, फैक्टरी, बड़े प्रतिष्ठानो में काम करने वाले लोग सार्वजनिक वाहनों में आने जाने के लिए  प्रोत्साहित हों, इस हेतु समुचित प्रयासों की आज तुरन्त आवश्यकता है। विभिन्न अधिकारी कर्मचारियों को सुबह और शाम में कार्यालय आने जाने के लिए एक कालोनी या स्थान विशेष से स्थान विशेष तक जाने के लिए कार्यालयों आदि में आने जाने हेतु एक ही वाहन या सार्वजनिक वाहन का उपयोग संबंधी व्यवस्था लागू कर प्रदूषण की समस्या पर कुछ अंश में तुरन्त कमी की जा सकती है।
 संगोष्ठी में समाज श्रेष्टि सर्व श्री राजेन्द्र पाल जी जैन, शान्ति लाल बागडिया, अनिल छाबड़ा, वाई के काला, हरक चंद छाबड़ा, ज्योतिर्विद् महावीर सोनी एवं सुरेखा सोनी सहित सभी ने अपने अपने सुझाव प्रस्तुत कर "जल एवं पर्यावरण कार्यक्रमों को कैसे बड़ी गति मिले" पर अपनी बात रखी। कार्यक्रम के अंत में भी सभी ने जल की एक एक बून्द बचाने के संकल्प पत्र पर लिखित में संकल्प लेकर अभियान को गति प्रदान की, ट्रस्ट द्वारा जारी स्वच्छ भारत अभियान के पोस्टर द्वारा भी देश को स्वच्छ बनाने की  दिशा  कार्य करने का संकल्प लिया. 
उल्लेखनीय है कि श्री महावीर कुमार सोनी द्वारा राज्य कर्मचारी संघ, युवा के अध्यक्ष के रूप में अप्रैल 2003 में "जल ही जीवन है - जल बचाओ महाअभियान" शुरू किया गया था जिसके तहत संघ द्वारा जारी संकल्प पत्र में जल की वास्तविक स्थिति का अति सुंदर एवं सरल भाषा में दिग्दर्शन कराते हुए जल की एक एक बून्द बचाने एवं दुरूपयोग होते हुए देखने पर उसे हर सम्भव उपाय द्वारा रोकने का संकल्प लिखित में करना, इस अभियान का मुख्य कार्य था, संकल्प पत्रों के द्वारा जल बचाने संबंधी इस अभियान की शुरुआत तत्कालीन जिला कलक्टर, जयपुर से संकल्प पत्र भरवा कर अप्रेल 2003 में शुरू हुआ था, कुछ वर्षों के उपरान्त तत्कालीन सम्भागीय आयुक्त के कर कमलों से संघ द्वारा "शुद्ध जल, शुद्ध पर्यावरण एवं सुरक्षित वातावरण हो पहला मानवाधिकार अभियान" भी इस संघ का ऐसे कार्यक्रमों में एक अभिनव प्रयास था।